उत्तराखंड

आपदा में तबाह हुई 185 साल पुरानी वाटर चैनल लाइन, दो जिलों का कटा संपर्क, 18वीं शताब्दी में बनी थी

आपदा में 185 साल पुरानी नहर क्षतिग्रस्त होने से देहरादून में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति प्रभावित.

देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 15 सितंबर की रात और 16 सितंबर की सुबह शहर के कई इलाकों में आपदा आई थी. आपदा का असर सबसे ज्यादा मालदेवता, सहस्त्रधारा और मसूरी में देखा गया. इस आपदा में तकरीबन 185 साल पुराने ऐसे निर्माण क्षतिग्रस्त हुए, जो अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए थे. इसमें आवाजाही के पुल और बेली ब्रिज भी शामिल थे. हालांकि, प्रशासन ने इन पुलों और बेली ब्रिज को तो तत्काल रीस्टोर कर लिया, लेकिन कुछ ऐसे आपदा प्रभावित क्षेत्र हैं, जहां आपदा के 20 दिन बाद भी संबंधित विभागों द्वारा किसी प्रकार की कोई कार्रवाई भी नहीं की गई है.

18वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा बनाई नहर क्षतिग्रस्त: देहरादून के मालदेवता से आगे टिहरी गढ़वाल जिले में पड़ने वाले शिवपुर कुमाल्डा गांव में अंग्रेजों द्वारा 1840 के आसपास बनाई गई नहर का एक बड़ा हिस्सा आपदा की जद में आया है. एक समय में देहरादून में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए ये नहर बेहद महत्वपूर्ण लाइफलाइन मानी जाती थी. हालांकि, संसाधनों के बढ़ने से वर्तमान में इन नहरों का प्रभाव कम हो गया था. लेकिन फिर भी मालदेवता और रायपुर क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल के लिए कई लोग इस नहर पर आश्रित थे.

बीते सितंबर माह में आई आपदा के दौरान बांदल नदी पर अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एस्टेब्लिशमेंट भी आपदा के जद में आया. बांदल नदी के ऊपर बनी नहर के टूट जाने से इस पूरे क्षेत्र की लाइफ लाइन माने जाने वाली नहर में जल प्रवाह रुक गया है. ये नहर देहरादून और टिहरी जिले को जोड़ने वाला एक संपर्क मार्ग भी था.

रायपुर क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल की समस्या खड़ी: स्थानीय निवासी शमशेर सिंह पुंडीर ने बताया कि इस नहर के टूट जाने से पूरे रायपुर क्षेत्र में सिंचाई को लेकर भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. जहां पर यह नहर टूटी है, उसे एस्केप चैनल या फिर एक्वाडक्ट कहते हैं, जिसके अंदर से तो पानी की नहर जाती है. लेकिन इसके ऊपर आवाजाही के लिए मार्ग भी चलता है.

उन्होंने बताया कि इसके टूटने से एक तो पेयजल की आपूर्ति ठप हो गई है. दूसरी तरफ सिंचाई को लेकर बहुत दिक्कतें आ रही हैं. यही नहीं, संपर्क टूट जाने की वजह से लोगों को भी बहुत ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

अंग्रेजों ने स्थानीय लोगों की सुविधाओं को दी थी प्राथमिकता: स्थानीय जनप्रतिनिधि ग्राम पंचायत भरवा कटल से आने वाले ज्येष्ठ प्रमुख जयकिशन उनियाल बताते हैं कि ग्राम पंचायत के शिवपुर कुमाल्डा गांव में 125 साल पुराना पुल जो देहरादून की महत्वपूर्ण नहर के साथ-साथ लोगों के आवाजाही का भी एक प्रमुख साधन था, इस आपदा में टूट गया है. इससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बुजुर्ग महिलाएं यहां पर बड़ी दिक्कतों का सामना कर रही हैं. जय किशन उनियाल का कहना है कि इस मार्ग के टूट जाने के बाद ग्रामीणों को तकरीबन कई किलोमीटर दूर से घूम कर आना पड़ा है.

उन्होंने बताया कि क्योंकि यह मुख्य रूप से एक नहर थी और यह निर्माण भी सिंचाई विभाग के अंतर्गत आता है और जब यह ध्वस्त हुआ था तो सिंचाई विभाग के लोग आए थे और स्थानीय लोगों द्वारा विभागीय अधिकारियों से कहा गया कि इसे दोबारा से वापस वैसा ही बनाया जाए, जैसे पहले था. सिंचाई विभाग द्वारा स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि वो नहर का निर्माण करेंगे. लेकिन इसके ऊपर रास्ते के निर्माण को लेकर कार्य करने के लिए वह अधिकृत नहीं हैं.

स्थानीय लोगों ने बताया कि अंग्रेजों द्वारा जब यह नहर बनाई गई थी तो स्थानीय लोगों द्वारा नहर के लिए जगह देने की पहली शर्त यही थी कि यह लोगों की आवाजाही के लिए काम में आए. लेकिन आज जब देश आजाद हो चुका है तो हमारी सरकार स्थानीय लोगों कि इस मांग को दरकिनार कर रही है. लोगों का साफ तौर पर कहना है कि अंग्रेजों ने जो दर्द स्थानीय लोगों का उस समय समझा, आज हमारी सरकार उसको नहीं समझ पा रही है. अंग्रेजों के जमाने से इस गांव की आवाजाही के लिए यही एकमात्र साधन है. पशु, स्थानीय लोग और दोपहिया वाहन इसी पुल से आवाजाही करते हैं और इस क्षेत्र में कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है, लेकिन सिंचाई विभाग ने यहां पुल बनाने के लिए स्पष्ट तौर पर मना कर दिया है.

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